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डॉक्टर रामकमल राय के सृजन सरोकार
डॉक्टर रामकमल राय के सृजन सरोकार
डॉ. वीरेंद्र सिंह यादव    11 Jun 2017       Email   

एक संवेदनशील रचनाकार, कुशल शब्द शिल्पी और समकालीन साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर, समाजसेवी एवं साहित्यकार के रूप में चर्चित, सहृदय, व्यवहार में मृदुल तथा लेखन में क्रियाशील, भाषा विज्ञान के मर्मज्ञ विद्वान डॉक्टर रामकमल राय अपने लेखन में मर्यादित सामाजिक संस्कृति के साथ-साथ राष्ट्रीय अस्मिता के प्रति सजगता के निर्माण की प्रेरणा अपनी रचनाओं के माध्यम से संप्रेषित करते नजर आते हैं। अनेक सामाजिक, संास्कृतिक तथा शैक्षणिक संस्थाओं के अध्यक्ष रह चुके डॉ. रामकमल राय लेखन की जिजीविषा से सक्रिय रूप से जुड़े रहे, जिसे बनाए रखने के लिए अपने जीवन में अंतिम समय तक वे सतत, जीवंत व सृजनशील रहे। डॉ. राय की अभिरुचि अनुसंधात्मक के साथ-साथ सदैव वैज्ञानिक व खोजपूर्ण रही है। चिंतन, मनन में सजग व सूक्ष्म दृष्टि रखने वाले रामकमल जी ने सामाजिक समस्याओं से संबंधित ज्वलंत व शोधपरक लेख अपनी पुस्तकों और समसामयिक पत्रिकाओं में लिखे हैं।
प्रस्तुत संपादित पुस्तक में एक सफल प्रशासक व संवेदनशील शख्सियत उनके पुत्र प्रोफेसर निशीथ राय द्वारा अपने पिता को दी जानेवाली श्रद्धंाजलि तो है ही, साथ ही डॉक्टर रामकमल राय के समकालीन साहित्यकारों की स्मृतियों के शुक्ल पक्ष भी हैं, जिन्होंने डॉक्टर राय को उनके साहित्य के माध्यम से या मित्रता की आत्मीयता अथवा निजी जीवन के साक्षी रूप में उन्हें करीब से देखा और समझा है। डॉ. रामकमल राय तत्कालीन समय यानी सन् 1978- 2003 ई. की कालावधि में साहित्य शिरोमाणि थे। अपनी इस संपादित पुस्तक में प्रोफेसर निशीथ राय ने रामकमल जी के अति नजदीक रहने वाले परम सनेही मित्र व सहयोगियों प्रो. सत्य प्रकाश मिश्र, गिरिराज किशोर, परमानंद श्रीवास्तव, सूर्य प्रसाद दीक्षित, विश्वनाथ त्रिपाठी, भारत भारद्वाज, लक्ष्मीकांत वर्मा, राजमल बोरा, अवधेश प्रधान, हरिनारायण राज, जय प्रकाश धूमकेतु, जैसे दिग्गज साहित्यकारों के लेखों को सम्मिलित किया है।  
दरअसल, अपने जीवन रूपी तिनके की उड़ान को डॉ. राय पाठकों के समक्ष बड़ी बेबाकी से रखते हैं। लगता नहीं कि वे मात्र अपनी जीवन-गाथा सुना रहे हैं, बल्कि हर उड़ान के पीछे एक मंतव्य, हर कथा के पीछे एक सधी दृष्टि, हर कार्य के पीछे एक आशावादी दृष्टिकोण, हर आशावादी दृष्टिकोण के साथ एक सकारात्मक सोच डॉक्टर रामकमल राय को हिंदी साहित्य का अजातशत्रु बनाती है। कुछ न छिपाने और सबकुछ दिखाने का नाम ही सृजन नहीं है, अपितु अपने अनुभवों, कार्यों, सोच आदि का समन्वित स्वरूप ही सृजन है। पारिवारिक रूप से समृद्ध होते हुए भी पारिवारिक चिंताओं से संघर्षरत और सामाजिक विसंगतियों से लड़ते हुए डॉ. रामकमल राय की लंबी अनुभव-यात्रा उन्हें ‘उस विराट ऊंचाई पर ले जाती है, जहां से उनके न चाहते हुए भी वे समूचे समाज को दिखाई देते हैं। रामकमल राय ने जय प्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया और आचार्य नरेंद्र देव के संपर्क से समता के केंद्रीय मूल्य का उन्मेष पाया। उन्होंने समाजवादी आंदोलनों में प्रखर भूमिका निभाई और कई बार जेल गए। सभी सरोकारों के बीच वे शाश्वत मूल्यों की तलाश में सदैव समर्पित रहे। उनमें मानवीय संबंधों की उच्च मूल्यवत्ता कूट-कूटकर भरी हुई थी। इसमें दो राय नहीं कि उपने समय के रचनाकारों की समालोचना में डॉ. रामकमल राय एक उदार किंतु न्याय और सत्य संचित मूल्यों के प्रति विशेष आस्थावान थे। इलाहाबाद को सपनों की भूमि मानने वाले डॉ. राय इलाहाबाद विश्वविद्यालय में जब नौकरी पाते हैं तो अपने अध्यापन से और गरीब छात्रों की मदद करके इतने लोकप्रिय हो जाते हैं कि शायद ही कोई अन्य अध्यापक उनके जैसी लोकप्रियता की इस कतार को पार कर पाया हो। वहीं शब्दकर्मियों की शब्द क्रीड़ा के माध्यम से की गई अभिव्यक्ति एक कौतूहल उत्पन्न करते हुए सहज ही मन को बेध देती है। ऐसा ही कुछ डॉक्टर रामकमल राय की रचनाओं को पढ़कर अहसास होता है। किसी भी व्यक्ति की सोच और उसकी अभिव्यक्ति उसके अंतर्मन में व्याप्त शब्दों का योग होती है। वह जो कुछ जैसा सोचता है, वही उसकी निजता बन जाती है। निष्कर्ष रूप में कहा जाए तो डॉक्टर रामकमल राय साहित्य की सरसता, सजग संवेदना और सूक्ष्म विवेचना की प्रवहमान त्रिवेणी थे। डॉक्टर राय अध्यापक, लेखक और राजनीति कर्मी के साथ-साथ एक यायावार भी थे। यात्राएं उन्हें प्रिय थीं। वे मुक्त मन से पर्वत प्रदेशों और सुदूर अंचलों की यात्राएं किया करते थे।  
डॉ. निशीथ राय द्वारा संपादित यह पुस्तक डॉक्टर रामकमल राय के सृजन सरोकारों की एक अमूल्य निधि के रूप में संग्रहणीय है। इस ग्रंथ के माध्यम से देश की युवा पीढ़ी को एक नया दृष्टिकोण मिल सकेगा। इसके साथ ही यह कृति देश-विदेश के अनेक विद्वतजनों, प्राध्यापकों, शोधार्थियों, विद्यार्थियों व पुस्तकालयों के लिए तो उपयोगी होगी ही, यह नई पीढ़ी के अध्येताओं के लिए अत्यंत उपादेय साबित होगी। 
समीक्षक डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय, लखनऊ में हिंदी एवं अन्य आधुनिक भारतीय भाषा विभाग के अध्यक्ष हैं






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