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रोजगार के हालात की सुधि लेंगे प्रधानमंत्री
रोजगार के हालात की सुधि लेंगे प्रधानमंत्री
जेपी सिंह    19 Jun 2017       Email   

जॉबलेस ग्रोथ यानी रोजगार विहीन विकास के विपक्ष के आरोपों के मद्देनजर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में रोजगार के वर्तमान परिदृश्य का जायजा लेंगे। मोदी ने 18 जुलाई को उच्चस्तरीय बैठक बुलाई है, जिसमें न सिर्फ अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के सृजन की मौजूदा स्थिति पर विचार किया जाएगा, बल्कि इस बात पर भी मंथन होगा कि देश में नौकरियों के विश्वसनीय आंकड़े जुटाने के लिए नया तंत्र किस तरह बनाया जाए। प्रधानमंत्री की इस बैठक में नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया रोजगार की स्थिति और आंकड़े जुटाने की मौजूदा व्यवस्था पर एक प्रजेंटेशन भी देंगे। बैठक में इसमें पीएमओ तथा संबंधित मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद होंगे। जब स्वयं प्रधानमंत्री एक उच्चस्तरीय बैठक कर देश में रोजगार के परिदृश्य का आकलन करने जा रहे हैं, तब उम्मीद जगी है कि केंद्र सरकार रोजगार के पर्याप्त अवसर पैदा न होने की समस्या की ओर गंभीरता से ध्यान देना चाहती है। यही नहीं रोजगारविहीन विकास की स्थिति के टैग से भी निपटने के हर संभव उपाय करने का प्रयास किया जाएगा।
नई नौकरियों के सृजन के संबंध में आंकड़े जुटाने के लिए पनगढ़िया की अध्यक्षता में टास्क फोर्स का गठन किया गया। इस समिति में श्रम सचिव, सांख्यिकीय मंत्रालय के सचिव तथा दो अन्य सदस्य शामिल हैं। इस टास्कफोर्स को टाइमली और रिलायबल स्टैटिस्टिक्स तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई है। दरअसल, यह पूरी जद्दोजहद जॉबलेस ग्रोथ के हवाले से हो रही सरकार की आलोचना का नीतिगत जवाब तैयार करने के लिए हो रही है। ‘जॉबलेस ग्रोथ’ का लांछन पूर्व की यूपीए सरकार पर भी लगा था और अब मोदी सरकार एंप्लायमेंट एवेन्यू और डेटा जेनरेशन, दोनों की पड़ताल करना चाहती है। इस मसले पर बैठक तब होने जा रही है, जब शीर्ष नीति निर्माताओं को लग रहा है कि नौकरी से जुड़े विश्वसनीय व समयबद्ध आंकड़ों का अभाव है, जिस वजह से नौकरियों के अवसरों का आंकलन करना मुश्किल हो जाता है। 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा ने रोजगार का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था और अब सरकार अगले आम चुनाव से पहले इस मुद्दे के समाधान को लेकर प्रयासरत है। चिंता यह है कि असल समस्या क्या है, अगर यह पता नहीं चले और नौकरी के अवसर व रोजगार की स्थिति स्पष्ट नहीं हो तो यह मामला सत्ताधारी दल के लिए कमजोर कड़ी साबित हो जाएगा। संबंधित आधिकारिक आंकड़े कुछ कमियों की वजह से स्पष्ट नहीं हो पा रहे हैं। ये खामियां संबंधित सेक्टर्स, अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के आकलन और नौकरियों व स्वरोजगार को लेकर स्पष्ट अंतर को लेकर हैं। हाल ही में नीति आयोग ने रोजगारविहीन विकास को लेकर हो रही आलोचना को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इस तरह के निष्कर्ष पर जाने के लिए भारत में कोई क्रेडिबल जॉब डेटा नहीं है। नीति आयोग का कहना है कि मौजूदा आंकड़ों में बड़ी खामी है।  प्रधानमंत्री मोदी ने जून की शुरुआत में मंत्रालयों को निर्देश दिया था कि वे रोजगार पैदा करने वाली योजनाओं ब्योरा दें और अगले दो साल में रोजगार पर फोकस रखें। विपक्ष के विरोध के बाद पीएमओ ने सभी मंत्रालयों को निर्देश दिए हैं कि तीन साल में उनके मंत्रालय ने रोजगार पैदा करने वाली कितनी योजनाए बनाईं और कितने लोगों को रोजगार दिया। इसकी पूरी रिपोर्ट 20 जून तक दें। प्रधानमंत्री कार्यालय ने सभी मंत्रालयों को ये भी कहा है कि मंत्रालय की योजनाएं बनाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि वे योजनाएं देश में रोजगार उपलब्ध कराने में कितनी मददगार होगी। प्रधानमंत्री मोदी ने निर्देश दिए हैं कि कैबिनेट को भेजे जाने वाले सभी प्रस्तावों में यह जानकारी आवश्यक रूप से होना चाहिए कि उनके मंत्रालय के प्रस्ताव को लागू करने से रोजगार के कितने मौके बनेंगे।
इंडिया स्पेंड द्वारा मई 17 में जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, केंद्र सरकार के लगातार रोजगार सृजन पर जोर देने के बावजूद भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार आने के बाद से बेरोजगारी बढ़ी है। भाजपा ने जब देश की सत्ता संभाली थी, उस समय (2013-14) देश में बेरोजगारी दर 4.9 फीसदी थी, जो अगले एक साल में (2015-16) 5.0 फीसदी हो गई।
भाजपा ने लोकसभा चुनाव-2014 के अपने घोषणा-पत्र में कहा था कि कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार बीते 10 सालों के दौरान कोई रोजगार पैदा नहीं कर सकी, जिससे देश का विकास बुरी तरह बाधित हुआ है। भाजपा अगर सत्ता में आई तो व्यापक स्तर पर आर्थिक सुधार करेगी और बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा करने पर ध्यान केंद्रित करेगी। प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने से पहले नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान के दौरान 2013 में आगरा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि अगर भाजपा सत्ता में आती है तो हम एक करोड़ रोजगार का सृजन करेंगे, जो संप्रग की सरकार घोषणा करने के बावजूद कर नहीं सकी।
श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के आधार पर तैयार आर्थिक सर्वेक्षण (2016-17) में कहा गया है कि रोजगार के अवसर पैदा करने की गति सुस्त हुई है। श्रम मंत्रालय के पांचवें वार्षिक रोजगार-बेरोजगार सर्वेक्षण (2015-16) की रिपोर्ट में कहा गया है कि बेरोजगारी दर पांच फीसदी रही। इस सर्वेक्षण में संगठित और असंगठित अर्थव्यवस्था दोनों को शामिल किया गया है। इसके अलावा सार्वजनिक रोजगार कार्यक्रमों के तहत काम करने वाले दिहाड़ी मजदूरों को भी शामिल किया गया। 2009-11 के बीच जब भारत की जीडीपी 8.5 प्रतिशत के औसत से वृद्धि कर रही थी, तब संगठित क्षेत्र में हर साल 9.5 लाख नई नौकरियां पैदा हो रही थीं। पिछले दो सालों, 2015 और 2016 में औसत रोजगार निर्माण गिरकर 2 लाख नौकरियां प्रतिवर्ष तक आ गया है। यह 2011 से पहले वार्षिक रोजगार निर्माण के 25 प्रतिशत से भी कम है। यूपीए-2 के शुरू के दो साल यानी 2009 और 2010 में 10.06 और 8.65 लाख नए रोजगार सृजित हुए थे। यदि इसकी तुलना 2015 और 2016 से की जाए तो मोदी राज के इन दो सालों में तकरीबन 74 फीसदी रोजगार के अवसर कम हो गए हैं।
विकास और आर्थिक प्रगति के तमाम दावों के बावजूद भारत में रोजगार का परिदृश्य और भविष्य धुंधला ही नजर आ रहा है। हाल में आए दो अलग-अलग अध्ययनों से पता चलता है कि वर्ष 2015-16 के दौरान भारत में बेरोजगारी दर बढ़ कर पांच फीसदी तक पहुंच गई, जो बीते पांच सालों के दौरान सबसे ज्यादा है। एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते चार वर्षों से रोजाना साढ़े पांच सौ नौकरियां गायब हो रही हैं। यह दर अगर जारी रही तो वर्ष 2050 तक देश से 70 लाख नौकरियां खत्म हो जाएंगी। इस बीच, एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में बीते चार वर्षों से रोजाना साढ़े पांच सौ नौकरियां घट रही हैं। अगर यही स्थिति जारी रही तो वर्ष 2050 तक 70 लाख नौकरियां गायब हो जाएंगी। दिल्ली स्थित सिविल सोसायटी ग्रुप प्रहार की ओर से जारी इस अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि किसानों, छोटे वेंडरों, ठेका मजदूरों और निर्माण के काम में लगे मजदूरों पर इसका सबसे प्रतिकूल असर होगा। श्रम ब्यूरो की एक रिपोर्ट के हवाले इस अध्ययन में कहा गया है कि देश में वर्ष 2015 के दौरान रोजगार के महज 1.35 लाख नए मौके पैदा हुए।
लोकतंत्र की सार्थकता भी तभी है, जब विकास अंतिम आदमी तक पहुंचे, लेकिन वर्तमान आर्थिक नीति के द्वारा एक ओर अरबपतियों की संख्या में वृद्धि हो रही है, वहीं दूसरी ओर देश के आठ राज्यों की अधिकतम आबादी अफ्रीका की जनता से भी ज्यादा दरिद्रता में जीवनयापन करने को मजबूर है। भारी आर्थिक विकास दर के बीच भारत की अर्थव्यवस्था दिनोंदिन गिरती जा रही है। उदारीकरण ने गरीब और अमीर के बीच की खाई को चौड़ा ही किया है। अर्थशास्ति्रयों ने उदारीकरण के विकास को जॉबलेस ग्रोथ बताया है। मतलब स्पष्ट है कि विकास दर तो बढ़ी, लेकिन रोजगार के अवसर नहीं बढ़े। उदारीकरण रोजगार पैदा करने के बजाय बेरोजगारों की फौज तैयार करता रहा है।






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