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जहरीली शराब का बढ़ता कहर
जहरीली शराब का बढ़ता कहर
बुद्ध प्रकाश    10 Jul 2017       Email   

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के देवारांचल स्थित रौनापुर थाना क्षेत्र में केवटहिया, ओढ़रा और सलेमपुर गांवों में गुरुवार को जहरीली शराब के सेवन से अब तक 17 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि दर्जन भर से ज्यादा लोग अभी भी अस्पतालों में जीवन और मृत्यु से जंग लड़ रहे हैं। डेढ़ वर्ष पूर्व भी इसी जिले के मुबारकपुर क्षेत्र में जहरीली शराब से 47 लोगों की मौत हो गई थी। इसके पूर्व बरदह के इरनी गांव में भी 11 लोग जहरीली शराब से मारे गए थे। इन गरीबों को सस्ते में मौत का सामान बेचकर कारोबारी और उस क्षेत्र की पुलिस की जेबें तो फुल हो रही हैं। लेकिन जहरीली शराब कांड के बाद कोई परिवार बेसहारा हो गया तो किसी के मां-बाप की गोद सूनी हो गई। एक साथ इतने लोगों की मौत से गांवों में चारों तरफ  मातम पसरा हुआ है। अफसोस है कि इन कारोबारियों पर कभी कोई ठोस कार्रवाई की गई होती तो आज यह मौत का कोहराम परिवार के लोगों को देखने को न मिलता। पहले शराब माफिया गांवों में कारोबार चोरी-छिपे करते थे, लेकिन अब खुलेआम जहरीली शराब बेचकर लोगों को मौत के मुंह में ढकेल रहे हैं। गांव-गांव में कुटीर उद्योग की तरह जहरीली शराब बनाई और बेची जा रही है। 
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे उन्नाव जिले में बीते अगस्त 2015 में 6 और जनवरी 2015 को लखनऊ और उन्नाव जिले की सीमा से लगे मलिहाबाद के एक गांव में क्रिकेट मैच के दौरान जहरीली शराब पीने से सिलसिलेवार पचास से ज्यादा लोगों की मौतें हो गई थीं और डेढ़ सौ से ज्यादा लोग बीमार हुए थे। घटना की गंभीरता को देखते हुए उस समय की समाजवादी सरकार ने भी सख्त रुख अख्तियार करके पुलिस प्रशासन व जिला आबकारी अधिकारी समेत कई अधिकारियों को निलंबित कर दिया था। इस घटना के बाद ताबड़तोड़ छापेमारी का अभियान भी चलाया गया, तब लग रहा था कि प्रदेश की अखिलेश सरकार इस अवैध कारोबार को जड़ से समाप्त करके ही चैन लेगी। आरोपित लोगों की गिरफ्तारियां भी हुई, लेकिन मामला ठंडा पड़ते ही शराब की भट्ठियां फिर से दहकने लगीं। जाहिर है कि इसके पीछे निहित मंशा लोगों का ध्यान मुद्दे से हटाने की थी, न कि जहरीली शराब के कारोबार का समूल विनाश करने की। अस्तु इस प्रकार की कार्रवाईयों का प्रदेश में कोई असर नहीं पड़ा, परिणामस्वरूप प्रदेश की योगी सरकार में पुनः घटना घट गई। घटना के बाद सक्रिय हुई पुलिस ने फिर से अवैध शराब की भट्ठियों पर छापामार कर सैकड़ों लीटर कच्ची शराब, ड्रम, पाउच, स्पि्रट, अल्कोहल, आक्सीटॉक्सिन इंजेक्शन सहित भारी मात्रा में शराब बनाने के उपकरण बरामद किए हैं। 
प्रदेश में अवैध शराब बनाने और उसकी बिक्री पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। सरकार कोई भी हो पुलिस व आबकारी विभाग की नाक के नीचे अवैध शराब का धंधा बदस्तूर जारी रहता है। पिछली सरकारों की तरह योगी सरकार में भी निचले स्तर के अधिकारियों-कर्मचारियों को निलंबित करके खानापूर्ति की गई है। बड़ों पर कार्रवाई होती नजर नहीं आ रही हैं। देश और प्रदेश में ऐसे कौन शराब माफियां हैं, जिनके संरक्षण में यह कारोबार फलफूल रहा है। आखिर इन लोगों के आगे खाकी वर्दी बौनी नजर क्यों आती है? देश में जब भी इस प्रकार की घटनाएं होती हैं तो हमेशा की तरह कार्रवाईयों का दौर शुरू हो जाता है। कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों को निलंबित करके मामले को दबाने के लिए परिजनों को मुआवजा राशि देकर कर्तव्य की इतिश्री कर दी जाती है। हर घटना के बाद कठोर कार्रवाई के नाम पर निलंबन और मुआवजे की घोषणा के अलावा राज्य सरकार अवैध शराब के कारोबार से जुड़े तंत्र पर कुठाराघात क्यों नहीं करती? क्या सरकार के भी ऊपर कोई दबाव है? यदि नहीं तो कोई ठोस कार्रवाई क्यों नहीं की जाती है? 
जहरीली शराब से मौतें प्रदेश में पहली बार नहीं हुई हैं। इस प्रकार की पिछली दर्जनों घटनाओं में हजारों बेगुनाह लोगों की जानें जा चुकी हैं। ऐसे हादसों में 90 के दशक में भदोही के 27, अक्टूबर 2001 में नोएडा के 18, फरवरी 2010 में वाराणसी के 13, मार्च 2010 में गाजियाबाद और बुलंदशहर के 30, अक्टूबर 2013 में आजमगढ़ के 37, नवंबर 2014 में भदोही के 10 लोगों की जान जहरीली शराब ने ले ली। जहरीली शराब की चपेट में राजधानी से सटे सीतापुर, उन्नाव, हरदोई, बाराबंकी सहित पश्चिमी और पूर्वांचल उत्तर प्रदेश के कई जिले गिरफ्त में हैं। आखिर इस जहरीली शराब से मौतों के असली जिम्मेदार कौन लोग हैं? जिनकी कारगुजारियों के कारण इन लोगों को बेमौत मारा जा रहा है। क्या भविष्य में मौत के इन ठेकेदारों के खिलाफ  कठोर कानून बनाकर कोई कार्रवाई हो पाएगी या नहीं या फिर देश की ये सरकारें मौत के इन सौदागरों को आंखें बंद कर देखती ही रहेंगी?
वर्तमान समय में कच्ची शराब यानी मौत के इस काले कारोबार का गोरखध्ंाधा कुटीर उद्योग के रूप में फैल चुका है। सरकार ने जिन लोगों पर इस कारोबार को रोकने की जिम्मेदारी दे रखी है, वे लोग इसके मुनाफे से अपना हिस्सा लेकर चुप ही रहते हैं। यही कारण है कि मौत के इस कारोबार पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। प्रदेश में बड़े पैमाने पर हो रही कच्ची शराब के उत्पादन व देशी-अंग्रेजी शराब की तस्करी से न सिर्फ  राजस्व का बड़ा नुकसान हो रहा है, बल्कि बड़ी संख्या में बेगुनाह लोगों की जानें भी जा रही हैं। प्रदेश की योगी सरकार ने आबकारी और पुलिस विभाग के कई अधिकारियों और कर्मचारियों को निलंबित कर दिया है। क्या अब अवैध शराब के बड़े कारोबारियों पर शिकंजा कस पाएगा? ये कहना अब भी बड़ा मुश्किल है। इस प्रकार की त्वरित कार्रवाइयां पहले की सरकारें भी कर चुकी हैं, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा। वास्तविकता यह है कि स्थानीय शासन-प्रशासन और आबकारी विभाग इससे भली-भांति वाकिफ  होने के बावजूद भी इसे रोकने की पहल नहीं कर रहा है। ऐसा शायद इसलिए है कि इन लोगों पर राजनीतिक दबाव होता है। यह भी किसी से छिपा नहीं है कि अवैध शराब के कारोबारी माफिया राजनीति से जुड़े होते हैं या उन्हें किसी न किसी रूप में राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होता है।
मौत की दवा बनती कच्ची शराब की इन भट्ठियों की ओर प्रशासन का ध्यान तभी जाता है, जब जहरीली शराब पीकर लोग मरने लगते हैं। ऐसे हादसों का शिकार हमेशा गरीब-श्रमिक निम्न वर्ग ही होता है। ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता, जिसमें किसी अमीर या बड़े वर्ग के व्यक्ति की मौत जहरीली शराब से हुई हो। इस जहर ने न जाने कितने विपन्न घरों को उजाड़ दिया है। निश्चय ही जहरीली शराब से होने वाली मौतें सभ्य समाज के लिए कलंक है और सरकार के लिए चुनौती। कानूनविद् विश्लेषक कहते हंै कि अवैध शराब कारोबारियों द्वारा आर्थिक लाभ के लिए शराब में हानिकारक पदार्थ मिलाकर बनाना व उसकी बिक्री करना समाज के लिए एक संगठित गिरोहबंद अपराध है। लिहाजा इन पर गिरोहबंद अधिनियम के अंतर्गत गैंगेस्टर, एनएसए व गुंडा एक्ट तथा आईपीसी की धाराओं के तहत कठोर कार्रवाही होनी चाहिए। ऐसे अपराध करने वाले लोगों के खिलाफ  पुलिस धारा-272 आईपीसी के तहत भी कार्रवाई कर सकती है, जिसमें आजीवन कारावास की सजा तक प्रावधान है। लेकिन पुलिस अवैध शराब कारोबारियों पर इन धाराओं का इस्तेमाल नहीं करती है। परंतु अब देश की राज्य सरकारों को सचेत रहना होगा कि भविष्य में ऐसी घटनाएं न होने पाएं। इसके लिए स्थाई रणनीति बनाकर अवैध शराब कारोबारियों और इनको सरंक्षण देने वालों के विरुद्ध गैगंस्टर जैसी कठोर धाराओं के साथ कार्रवाई करनी होगी। जिस क्षेत्र में यह कारोबार पकड़ा जाए, वहां की पुलिस को भी जिम्मेदार मानते हुए दंडित किया जाए, तभी इस समस्या से छुटकारा मिल सकता है।






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