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अहमदाबाद की ऐतिहासिक पहचान
अहमदाबाद की ऐतिहासिक पहचान
जाहिद खान    16 Jul 2017       Email   


किसी भी देश की पहचान उसकी संस्कृति और सांस्कृतिक, प्राकृतिक व ऐतिहासिक धरोहरों से होती है। ये धरोहर न सिर्फ  उसे विशिष्टता प्रदान करती हैं, बल्कि दूसरे देशों से उसे अलग भी दिखलाती हैं। हमारे देश में उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम तक यानी चारों दिशाओं में ऐसी सांस्कृतिक, प्राकृतिक और ऐतिहासिक छटाएं बिखरी पड़ी हैं कि विदेशी पर्यटक उन्हें देखकर मंत्रमुग्ध हो जाएं। प्राचीन स्मारक, मूर्ति शिल्प, पेंटिंग, शिलालेख, प्राचीन गुफाएं, वास्तुशिल्प, ऐतिहासिक इमारतें, राष्ट्रीय पार्क, प्राचीन मंदिर, अछूते वन, पहाड़, विशालकाय रेगिस्तान, खूबसूरत समुद्रीय तट, शांत द्वीप समूह और भव्य व आलीशान किले। इन धरोहरों में से कुछ धरोहर ऐसी हैं, जिनका दुनिया में कोई मुकाबला नहीं। ये धरोहर सचमुच बेमिसाल हैं। ऐसी ही एक बेमिसाल धरोहर गुजरात का छह सौ साल पुराना शहर अहमदाबाद, अब विश्व धरोहर शहर बन गया है। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन यानी यूनेस्को की विश्व विरासत समिति ने हाल ही में पोलैंड के क्रेको शहर में हुई अपनी 41वीं बैठक में अहमदाबाद शहर को अपनी विश्व धरोहर सूची में शामिल कर लिया है। तुर्की, लेबनान, ट्यूनीशिया, पुर्तगाल, पेरू, कजाकिस्तान, वियतनाम, फिनलैंड, अजरबैजान, जमैका, क्रोएशिया, जिम्बाब्वे, तंजानिया, दक्षिण कोरिया, अंगोलम और क्यूबा समेत करीब 20 देशों ने इस बैठक में सांस्कृतिक शहरों की श्रेणी में अहमदाबाद का समर्थन किया। इन देशों ने अहमदाबाद को नक्काशीदार लकड़ी की हवेली की वास्तुकला के अलावा सैकड़ों वर्षों से इस्लामिक, हिंदू और जैन समुदायों के एक धर्मनिरपेक्ष सह-अस्तित्व वाला शहर मानते हुए सर्वसम्मति से चुना। इन देशों के प्रतिनिधियों के लिए अहमदाबाद का महत्व इसलिए भी था कि यही वह शहर है, जहां से महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत के अहिंसक स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष शुरू हुआ और वह 1947 में अंजाम तक पहुंचा। महात्मा गांधी साल 1915 से 1930 तक यहां रहे और उनकी कई यादें, इस ऐतिहासिक शहर से जुड़ी हुई हैं। देशवासियों के लिए यह सचमुच गर्व की बात है कि यूनेस्को ने पहली बार भारत के किसी शहर को विश्व धरोहर का दर्जा दिया है। भारत के लिए यह उपलब्धि इसलिए भी और खास मायने रखती है कि भारतीय उपमहाद्वीप के केवल दो शहर-नेपाल के भक्तपुर और श्रीलंका के गॉल को ही इस सूची में शामिल होने का गौरव हासिल है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखें, तो चंद शहर पेरिस, वियना, काइरो, ब्रूसेल्स, रोम और एडिनबर्ग ही इस श्रेणी में शामिल हैं।
अहमदाबाद शहर को विश्व धरोहरों की फेहरित में शामिल करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार दोनों बीते सात साल से लगातार कोशिशें कर रहे थे। गुजरात सरकार ने अहमदाबाद को सांस्कृतिक शहरों की श्रेणी में वर्ल्ड हैरिटेज सिटी का दर्जा प्रदान करने के लिए 31 मार्च, 2011 में इस शहर का विस्तृत विवरण तैयार कर एक प्रस्ताव विश्व विरासत केंद्र को भेजा था। प्रस्ताव में अहमदाबाद के अभूतपूर्व सार्वभौम मूल्यों का उल्लेख करते हुए पिछली कई सदियों से इस शहर की अनोखी बसाहट, आर्थिक, वाणिज्यिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के साथ विभिन्न समुदाय के लोगों के बीच सहअस्तित्व की भावना का खास तौर से उल्लेख था। यही नहीं प्रस्ताव में अहमदाबाद के परकोटा क्षेत्र में बने ओटले यानी चबूतरे, पोल और उनकी गलियां, पोलों में रहने वाले लोगों के रहन-सहन को भी शामिल किया गया था। लकड़ी व स्थानीय ईंटों से तैयार किए गए पोल के मकान अपनी बनावट और नक्काशी के लिए अनूठी पहचान रखते हैं। इन पोलों के मकान के आंगन की खासियत यह है कि वह वातावरण को नियंत्रित करने में मददगार साबित होता है। पोलों की गलियों का आपसी जुड़ाव भी अनूठा है। बहरहाल सरकार की ये कोशिशें रंग लाई और अंतरराष्ट्रीय स्मारक और स्थल परिषद की सिफारिश पर यूनेस्को की वर्ल्ड हैरिटेज कमेटी ने अहमदाबाद शहर को विश्व विरासत की फेहरिस्त में शामिल कर लिया। यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत में शामिल कर लिए जाने के बाद, वह जगह या स्मारक पूरी दुनिया की धरोहर बन जाता है। इन विश्व स्मारकों का संरक्षण यूनेस्को के इंटरनेशनल वर्ल्ड हेरिटेज प्रोग्राम के तहत किया जाता है। यूनेस्को हर साल दुनिया भर के ऐसे ही बेहतरीन सांस्कृतिक और प्राकृतिक स्मारकों को सूचीबद्ध कर, उन्हें उचित देखभाल प्रदान करती है। इन विश्व धरोहरों का वह प्रचार-प्रसार करती है, जिससे ज्यादा से ज्यादा पर्यटक इन स्मारकों के इतिहास, स्थापत्य कला, वास्तु कला और प्राकृतिक खूबसूरती से वाकिफ  होते हैं। विश्व विरासत की सूची में शामिल होने का एक फायदा यह भी होता है कि उससे दुनिया भर के पर्यटक उस तरफ  आकर्षित होते हैं। अहमदाबाद शहर की स्थापना तत्कालीन मुगल शासक अहमद शाह अब्दाली ने आज से छह सदी पहले 1411 में की थी। जाहिर है कि उन्हीं के नाम पर बाद में इस शहर का नाम अहमदाबाद पड़ा। अहमदाबाद शहर न सिर्फ  ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि स्थापत्य कला के लिहाज से भी इसकी एक अलग अहमियत है। चारों और दीवारों से घिरे इस ऐतिहासिक शहर में दस दरवाजे हैं और 29 ऐतिहासिक महत्व के स्मारक हैं, जिनके संरक्षण की जिम्मेदारी भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग पर है। इन स्मारकों के संरक्षण का काम यहां बेहतरीन है। देश के दीगर ऐतिहासिक शहरों की बनिस्बत ये शहर आज भी बहुत बढ़िया हालत में हैं। इस शहर के स्मारकों की नक्काशी व बनावट लाजवाब है। इनको देखकर अतीत का पूरा परिदृश्य मानो साकार हो जाता है। जामा मस्जिद, रानी रूपमती की मस्जिद, झूलती मीनारें, हट्टी सिंह का जैन मंदिर, शाही बाग पैलेस, कांकरिया झील, भद्र का किला, सीदी सैयद की मस्जिद, साबरमती आश्रम, लोथल, अदलज की बाव, मोढेरा का सूर्य मंदिर, तीन दरवाजा, सीदी बशीर मस्जिद, नल सरोवर, विजय विलास पैलेस आदि सांस्कृतिक विविधता को प्रदर्शित करने वाले ये स्थल और स्मारक देशी-विदेशी सैलानियों को अपनी खूबसूरती से अचंभित कर देते हैं। यही वजह है कि सैलानी यहां खूब आते हैं। गुजरात में विदेशी सैलानियों की पहली पसंद अहमदाबाद शहर होती है। यहां की संस्कृति, प्राचीन मंदिर, मस्जिदें, प्राकृतिक झील और आलीशान इमारतें उन्हें खूब भाती हैं। यूनेस्को की सूची में शामिल होने के बाद निश्चित तौर पर अहमदाबाद में आने वाले पर्यटकों की संख्या और भी बढ़ेगी। अभी तक भारत के केवल 35 स्मारक विश्व विरासत की सूची में शामिल थे। अहमदाबाद के विश्व विरासत की सूची में शामिल हो जाने से अब इनकी संख्या 36 हो गई है। अब जबकि अहमदाबाद को विश्व धरोहर का दर्जा मिल गया है तो केंद्र सरकार और गुजरात सरकार दोनों की ये सामूहिक जिम्मेदारी बनती है कि वह इस शहर के ऐतिहासिक स्मारकों और पर्यटक स्थलों को और भी ज्यादा बेहतर तरीके से सहेजने और संवारने के लिए, एक व्यापक कार्ययोजना बनाए। ताकि ये अनमोल धरोहर हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी सुरक्षित रहे। विश्व विरासत की सूची में शामिल होने के बाद, निश्चित तौर पर जिम्मेदारियों में भी इजाफा होता है। जिम्मेदारियां न सिर्फ  सरकार की बढ़ी हैं, बल्कि हर भारतीय नागरिक की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह अपनी इन अनमोल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों को सहेज कर रखें। उनका संरक्षण करें। इनके महत्व को खुद समझें और आने वाली पीढ़ियों को भी इनका महत्व समझाएं। एक महत्वपूर्ण बात और, जो भी विदेशी पर्यटक इन ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों को देखने आए, उन्हें यहां सुरक्षा, अपनत्व और विश्वास का माहौल मिले। वे जब अपने देश वापस लौटकर जाएं तो भारत की एक अच्छी छवि और यादें उनके संग हो। 






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