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अधिकारियों की मौत हत्या या आत्महत्या
अधिकारियों की मौत हत्या या आत्महत्या
दिव्येन्दु राय    11 Jul 2020       Email   

डेली न्यूज लखनऊ.....जब किसी की संतान पैदा होती है तभी उससे अभिभावक तय कर लेते हैं की मेरा बच्चा यह बनेगा| भविष्य में वह संतान आगे चलकर क्या बन पाती है यह उसके मेहनत, भाग्य और मानसिक स्तर पर निर्भर करता है| भारत के अधिकांशत: अभिभावक विशेषकर उत्तर प्रदेश एवं बिहार के अभिभावक यही चाहते हैं की उनके बच्चे अधिकारी बनें, आईएएस आईपीएस बनें और अगर यह न बन पायें तो कम से कम पीसीएस अधिकारी तो बन ही जायें|
अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिये हर एक माता-पिता, अभिभावक हर तरह का त्याग करते हैं| वह अपनी क्षमता के अनुसार अपने संतानों को पढ़ने के लिये, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिये बनारस, इलाहाबाद(प्रयागराज), मुखर्जी नगर(दिल्ली) आदि स्थानों पर भेजते हैं| बच्चों की कोचिंग फीस, कमरे का किराया और जेबखर्च भेजने के लिये अभिभावक ना जाने कितने त्याग करते हैं, कुछ बच्चें अपने अभिभावकों के इस त्याग, तपस्या को समझते हैं तो कुछ समझते हुए भी नहीं समझते या फिर कुछ यूं कहें की समझना ही नहीं चाहते|
छात्रों के लिये 24 घण्टे तब कम पड़ने लगते हैं जब वह 12-14 घण्टे पढ़ते हैं, अधिकांशत: वही छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होते हैं जो कई-कई वर्षों तक 6 से 12,14 घण्टे प्रतिदिन अध्ययन करते हैं और उनकी किस्मत अच्छी होती है क्योंकि बहुतेरो छात्र योग्य होकर भी अधिकारी नहीं बन पाते| खुद को अधिकारी बनाने की ठान लिये यह युवा वर्षों तक समाज से एकदम कट कर अपना पूरा ध्यान आपने अध्ययन पर केन्द्रित रखते हैं, अपने पारिवारिक समारोहों तक से खुद को वंचित रखते हैं तब जाकर वह इतने योग्य बनते हैं की कह पाते हैं कि पुलिस रिफार्म की जरूरत है, भारत में कट्टरता का कोई स्थान नहीं है| इतने त्याग, परिश्रम के बाद जब कोई कहीं चयनित होता है तो उसके इस सफलता पर प्रतियोगी के साथ-साथ उसके घर-परिवार, गाँव-जवार, जिले का मान सम्मान बढ़ता है|
जब यह छात्र चयनित होकर अधिकारी बनने के उपरान्त अपने कार्यस्थल, कार्यक्षेत्र में होते हैं तो उन्हें रोज अलग-अलग तरह की नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है| अधिकारियों के ऊपर बेवजह राजनीतिक और उच्च स्तरीय अधिकारियों से दबाव बनवाया जाता है कुछ गलत कृत्यों/कार्यों को देखकर भी अनदेखा करने के लिये| अधिकारियों से जनप्रतिनिधि ऐसे पेश आते हैं जैसे अधिकारी उनके नौकर हों जबकि, जनप्रतिनिधि हों या लोकसेवक यह दोनों वर्ग आमजन का सेवक है न की आमजन पर हुकूमत चलाने वाला राजा| इन सबसे अधिकारी डिप्रेशन में आकर खुद की इहलीला समाप्त करने जैसे कदम भी उठा लेते हैं| आत्महत्या के अधिकांशत: प्रयास 15 से 29 वर्षों के मध्य उम्र समूह के लोग सर्वाधिक करते हैं, आत्महत्या करने वालों की दर 1960 से 2012 तक लगभग 60% तक बढ़ चुकी थी|
जनप्रतिनिधियों की वर्तमान में क्या स्थिति है यह किसी से छुपी नहीं है, एक दौर था जब जनप्रतिनिधि आमजन के लिये अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देते थे और अधिकारी वर्ग पर उचित कार्य को त्वरित कराने के लिये दबाव बनाते थे लेकिन भारत की राजनीति में इतना अमूलचूक परिवर्तन आयेगा इसकी कल्पना सम्भवत: किसी ने नहीं की थी|
21वीं सदी में अब जनप्रतिनिधि आमजन के उचित कार्यों के स्थान पर अपने करीबी लोगों के नैतिक, अनैतिक कार्यों को कराने के लिये ज्यादा तत्पर दिख रहे हैं| अभी कुछ दिनों पहले ही उत्तर प्रदेश के बलिया जनपद में एक ऐसी घटना घटित हुई जिसके बाद से उत्तर प्रदेश का अधिकारी वर्ग/ कर्मचारी वर्ग डर के साये में जी रहा है| एक 30 साल की युवा पीसीएस अधिकारी ने पूर्व के भ्रष्ट अधिकारियों, कर्मचारियों एवं जनप्रतिनिधियों के प्रताड़ना से आजिज आकर मौत को गले लगाना बेहतर समझा| उक्त अधिकारी ने अपने आत्महत्या करने से पहले एक पत्र में कईयों का नाम लिखा था जिनके ऊपर मुकदमा तो दर्ज हो गया है लेकिन पीड़िता को इंसाफ मिल पायेगा या नहीं कुछ कहा जाना जल्दबाज़ी होगी| इस घटनाक्रम सर्वाधिक हैरानी वाली बात यह रही की एक भी जनप्रतिनिधि मृतका अधिकारी को इंसाफ दिलाने के मुहिम चलाना तो दूर, इंसाफ दिलाने के लिये दो बोल तक उन जनप्रतिनिधियों के नहीं निकल पाये|
पीड़िता अधिकारी ने आत्महत्या की या फिर यह एक सोची समझी साजिश की तहत की गई एक हत्या है यह सब जाँच के बाद ही स्पष्ट हो पायेगा लेकिन सबके इतर इस घटनाक्रम में एक बात तो बेहद स्पष्ट है की यह मामला कहीं न कहीं भ्रष्टाचार से जुड़ा हुआ है और मृतका अधिकारी इन भ्रष्टाचारियों के राह में रोड़ा बन रहीं थीं| भ्रष्टाचार की जड़े कितनी लम्बी हैं इस बात का अंदाजा बस इसी बात से लगाया जा सकता है की मृतका अधिकारी का सरकारी वाहन तक उनसे ले लिया गया था|
इस प्रकरण के हर एक पहलू की जाँच के लिये उत्तर प्रदेश सरकार को इस प्रकरण की जाँच किसी स्वतंत्र जाँच एजेंसी से करानी चाहिए ताकि सच बाहर आ सके और अपराधियों को सख्त सजा मिल सके क्योंकि यह मामला ह्त्या/आत्मह्त्या के साथ-साथ भ्रष्टाचार से भी जुड़ा हुआ है इसलिए प्रत्येक पहलू यानि आरोपित अधिकारियों, कर्मचारियों एवं जनप्रतिनिधियों की सम्पत्तियों की जाँच भी होनी चाहिए|






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