नयी दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने रविवार को कहा कि भारतीय संस्कृति विश्व को अपनी ओर आकर्षित कर रही है जिसकी वजह से आज दुनिया भर के लोग भारत को जानना चाहते हैं, भारत के लोगों को जानना चाहते हैं। श्री मोदी ने अपने मासिक कार्यक्रम मन की बात में कहा “सुलेख के जरिए हमारी लिखावट साफ, सुंदर और आकर्षक बनी रहती है । आज जम्मू-कश्मीर में इसका उपयोग स्थानीय संस्कृति को लोकप्रिय बनाने के लिए किया जा रहा है । अनंतनाग की फ़िरदौसा बशीर को कैलीग्राफ़ी (सुलेख) में महारत हासिल है, इसके जरिए वह स्थानीय संस्कृति के कई पहलुओं को सामने ला रही हैं । ऐसा ही एक प्रयास उधमपुर के गोरीनाथ भी कर रहे हैं । एक सदी से भी अधिक पुरानी सारंगी के जरिए वह डोगरा संस्कृति और विरासत के विभिन्न रूपों को सहेजने में जुटे हैं। सारंगी की धुनों के साथ वह अपनी संस्कृति से जुड़ी प्राचीन कहानियां और ऐतिहासिक घटनाओं को दिलचस्प तरीके से बताते हैं । देश के अलग-अलग हिस्सों में भी आपको ऐसे कई असाधारण लोग मिल जाएंगे जो सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए आगे आए हैं । डी. वैकुन्ठम करीब 50 साल से चेरियाल फोक आर्ट को लोकप्रिय बनाने में जुटे हुए हैं । तेलंगाना से जुड़ी इस कला को आगे बढ़ाने का उनका यह प्रयास अद्भुत है । छत्तीसगढ़ में नारायणपुर के बुटलूराम माथरा अबूझमाड़िया जनजाति की लोक कला को संरक्षित करने में जुटे हुए हैं । पिछले चार दशकों से वह अपने इस मिशन में लगे हुए हैं । उनकी ये कला ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ और ‘स्वच्छ भारत’ जैसे अभियान से लोगों को जोड़ने में भी बहुत कारगर रही है।”
उन्होंने कहा कि कश्मीर की वादियों से लेकर छत्तीसगढ़ के जंगलों तक, हमारी कला और संस्कृति नए-नए रंग बिखेर रही है, लेकिन यह बात यहीं खत्म नहीं होती । हमारी इन कलाओं की खुशबू दूर-दूर तक फैल रही है । दुनिया के अलग-अलग देशों में लोग भारतीय कला और संस्कृति से मंत्रमुग्ध हो रहे हैं । जब मैं आपको उधमपुर में गूँजती सारंगी की बात बता रहा था, तब मुझे याद आया कि कैसे हजारों मील दूर, रूस के शहर याकूत्स्क में भी भारतीय कला की मधुर धुन गूंज रही है । वहाँ एक थियेटर में दर्शक मंत्रमुग्ध होकर देख रहे हैं - कालिदास की “अभिज्ञान शाकुंतलम” । क्या आप सोच सकते हैं दुनिया के सबसे ठंडे शहर याकूत्स्क में, भारतीय साहित्य की गर्मजोशी ! ये कल्पना नहीं सच है - हम सबको गर्व और आनंद से भर देने वाला सच।
प्रधानमंत्री ने कहा, “कुछ हफ्ते पहले, मैं लाओस भी गया था । वह नवरात्रि का समय था और वहाँ मैंने कुछ अद्भुत देखा । स्थानीय कलाकार “फलक फलम” प्रस्तुत कर रहे थे – ‘लाओस की रामायण’ । उनकी आँखों में वही भक्ति, उनके स्वर में वही समर्पण, जो रामायण के प्रति हमारे मन में है । इसी तरह, कुवैत में अब्दुल्ला अल-बारुन ने रामायण और महाभारत का अरबी में अनुवाद किया है । यह कार्य मात्र अनुवाद नहीं, बल्कि दो महान संस्कृतियों के बीच एक सेतु है । उनका यह प्रयास अरब जगत में भारतीय साहित्य की नई समझ विकसित कर रहा है । पेरू से एक और प्रेरक उदाहरण है - एरलिंदा गार्सिआ वहाँ के युवाओं को भरतनाट्यम सिखा रही हैं और मारिया वालदेस ओडिसी नृत्य का प्रशिक्षण दे रही हैं । इन कलाओं से प्रभावित होकर, दक्षिण अमेरिका के कई देशों में ‘भारतीय शास्त्रीय नृत्य’ की धूम मची हुई है। उन्होंने कहा कि विदेशी धरती पर भारत के यह उदाहरण दर्शाते हैं कि भारतीय संस्कृति की शक्ति कितनी अद्भुत है । यह लगातार विश्व को अपनी ओर आकर्षित कर रही है । आज दुनिया भर के लोग भारत को जानना चाहते हैं, भारत के लोगों को जानना चाहते हैं । इसलिए आप सभी से एक अनुरोध भी है, अपने आस-पास ऐसी सांस्कृतिक पहल को हैशटैगकल्चरलब्रिज के साथ साझा कीजिए ।