यह मैं अपने संपादकीय अनुभव के आधार पर कह सकता हूं। वास्तविक अर्थ में डा. राय संपादकीय गरिमा और संपादक की स्वतंत्रता के कायल थे। वे हिंदी पत्रकारिता की गौरवशाली परंपरा और लोकतांत्रिक मूल्यों में गहरा विश्वास रखते थे। यह सांस्कारिक स्वभाव उन्होंने प्रतिष्ठित साहित्यकार अपने पिता दिवंगत रामकमल राय जी से सहज ही प्राप्त किया था। समाजवादी विचारधारा में अडिग पिता के मझले पुत्र प्रोफेसर निशीथ राय जातिभेद और लिंगभेद से सर्वथा मुक्त रहते हुए अपने अखबार के सभी सहकर्मियों को उनकी योग्यता और कर्मनिष्ठा के आधार पर यथोचित भूमिका और सम्मान देते थे। वे सबकी सुनते थे और किसी भी मामले में ऐसा निर्णय लेते थे जो सर्वस्वीकार्य होता था। डाक्टर निशीथ राय का व्यक्तित्व बहुआयामी था। वे एक साथ शिक्षाविद, अत्यंत दक्ष व कुशल प्रकाशक, अनेक कार्यों के संयोजक, संचालक और समन्वयक थे। उन्होंने लखनऊ के डा. शकुन्तला मिश्र विश्वविद्यालय को कुलपति बनने के बाद राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय के रूप में नई ऊंचाई और प्रतिष्ठा दिलाई। अनेक नए विभाग स्थापित किए और सुयोग्य विषय विशेषज्ञ शिक्षकों की नियुक्तियां करते हुए विश्वविद्यालय का बहुआयामी विकास किया। उनमें एक बड़ी खूबी यह थी कि वे अपनी विभिन्न व बहुस्तरीय भूमिकाओं में कभी किसी भी रूप में घालमेल नहीं करते थे। एक प्रोफेसर, एक कुलपति, समाचार पत्र के संस्थापक-मार्गदर्शक और भारत सरकार के लखनऊ स्थित क्षेत्रीय नगरीय विकास अध्ययन केंद्र के निदेशक के रूप में उन्होंने जैसी भूमिका निभाई, उनसे जुड़े सहकर्मी कभी भुला नहीं सकते। अनुशासन प्रिय, समय के पाबंद, अनथक कर्म तपस्वी आदरणीय निशीथ राय जी के असमय चले जाने पर कहि न जाय, का कहिये! अब स्मृति शेष हो चुका वह मुस्कराता चेहरा दोबारा नहीं दिखेगा! लेकिन उनकी स्मृति हमारे हृदय पटल पर अंकित रहेगी।