12वें ब्रिक्स सम्मेलन का इस बार जमकर विरोध हुआ। कई जगहों पर आगजनी की भी घटनाएं हुई हैं। प्रदर्शनकारी ‘नरक में स्वागत है’ की पट्टियां लेकर प्रदर्शन कर रहे थे। शिखर सम्मेलन स्थल के पास प्रदर्शनकारियों ने पानी की बोतलें फेंकी। पुलिस के साथ उनकी झड़पें भी हुईं। प्रदर्शनकारी जोम्बी बनकर (जोम्बी वॉक) शहर भर में घूम रहते रहे। दरअसल प्रदर्शनकारी अमेरिका द्वारा पेरिस जलवायु समझौते से खुद को अलग किए जाने का विरोध कर रहे थे। जी-20 सम्मेलन के विरोध में हजारों प्रदर्शनकारी हैम्बर्ग की सड़कों पर जुटे हुए थे। विरोध को देखते हुए कोई अनहोनी न हो, इसके लिए सम्मेलन स्थल की सुरक्षा चौकस कर दी गई है। सभी नेताओं को भी अलग से सुरक्षा प्रदान की गई है।
जर्मनी में आयोजित 12वें जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान आतंकवाद से मुकाबला और आर्थिक सुधार जैसे मुद्दों पर बात तो जरूर हुई, लेकिन कोई सकारात्मक बात नहीं निकल सकी। पहले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी देशों से अपील करते हुए आतंकवाद के खिलाफ एकजुट होने का आग्रह किया। कुछ देशों ने समर्थन किया तो कुछ चुप रहे। सम्मेलन के दौरान मोदी ने मुक्त और खुला व्यापार, जलवायु परिवर्तन, आव्रजन, सतत विकास और वैश्विक स्थायित्व जैसे विषयों पर भी चर्चा की। दरअसल, यह सम्मेलन उस वक्त आयोजित हो रहा है, जब चीन-भारत में सीमा विवाद को लेकर तनातनी का माहौल है। हैम्बर्ग में ब्रिक्स सम्मेलन के दौरान हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग आपस में मिले भी। लेकिन मुलाकात में वह बात नहीं दिखाई दी।
हालांकि पहले कहा जा रहा था कि दोनों नेताओं के लिए ब्रिक्स का मंच बातचीत के उचित नहीं है। लेकिन फिर भी जी-20 सम्मेलन के दौरान दोनों नेता मिले। हाथ मिलाया। एक-दूसरे की तारीफ की। हालांकि सीमा विवाद पर कोई बात नहीं हुई। इसके तुरंत बाद विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गोपाल बागले ने ट्वीट कर जानकारी दी कि हैम्बर्ग में चीन की मेजबानी में हुई ब्रिक्स नेताओं की अनौपचारिक बैठक में पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी ने व्यापक मुद्दों पर बात की। यह बातचीत किसी दिशा में पहुंचेगी, यह बताना मुश्किल होगा। दरअसल ब्रिक्स के दौरान दोनों नेताओं का मिलना महज औपचारिकता ही समझा जाएगा, नहीं मिलते तो उसका गलत संदेश भी जा सकता था। लेकिन मौजूदा मसला बहुत ही नाजुक स्थिति में पहुंच गया है। इसे सुलझाने के लिए दोनों देशों के एक मंच पर आना होगाा। ऐसा होगा, यह भी उम्मीद न के बराबर ही है। माहौल जंग जैसे बन गए हैं। एकाधिक विवादों और खासकर दोकलम के मुद्दे पर चीन और भारत के बीच तनातनी की पृष्ठभूमि में जर्मनी में शुरू हुए ब्रिक्स सम्मेलन पर स्वाभाविक ही दुनियाभर की नजरें गड़ी हुई हैं। यह बेहद ही आश्वस्त करने वाली बात है कि चीन और भारत के बीच चल रहे विवादों के वाबजूद ब्रिक्स की बैठक में दोनों नेताओं के बीच सौहार्दपूर्ण बात हुई। इस बीच मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अध्यक्षता में ब्रिक्स के काम करने की गति की तारीफ की और सहयोग का वादा किया। इसके बाद चीन के राष्ट्रपति ने कहा कि भारत की अध्यक्षता में 2016 में हुए गोवा सम्मेलन के बाद ब्रिक्स ने अच्छी गति पकड़ी। उन्होंने भारत की तरक्की की तारीफ की। मोदी ने जीएसटी का भी जिक्र किया। दोनों देशों के बीच बातचीत का सिलसिला यूं ही आगे भी चलता रहे, इस बात की दरकार है।
सिक्किम क्षेत्र में भारत व चीन के बीच गतिरोध और विवादित दक्षिण व पूर्व चीन सागरों में बीजिंग के दावों के बीच चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग ने ब्रिक्स देशों से अपील की कि वे क्षेत्रीय संघर्षों एवं विवादों का राजनीतिक एवं शांतिपूर्ण समाधान खोजें।
सम्मेलन के दौरान जब मोदी को बोलना था तो उन्होंने कहा कि कुछ देश आतंकवाद को राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। पाकिस्तान का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि आतंकवाद का साथ देने वालों के खिलाफ जी-20 के सभी देशों को एकजुट होना चाहिए। आतंक को पालने वालों को अलग-थलग किया जाए। उनकी इस बात का शी जिनपिंग ने आतंकवाद के खिलाफ भारत के मजबूत संकल्प की तारीफ की और समर्थन किया। हालांकि यह सब पाकिस्तान को अभी से चुभने लगा है। पाकिस्तान कतई नहीं चाहता कि चीन-भारत नजदीक आएं।
भारत की बात न करें तो ब्रिक्स सम्मेलन में अमेरिकी और चीन की कलह सामने आ गई। अमेरिका ने एक बार फिर चीन को चुनौती दी है। अमेरिकी वायुसेना के दो लड़ाकू विमानों ने विवादित दक्षिणी चीन सागर के ऊपर उड़ान भरी। अमेरिकी वायुसेना ने इसकी जानकारी दी और इस क्षेत्र पर चीन के दावे को दरकिनार करते हुए इसे अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र करार दिया। इस बात की तिलमिलाहट सम्मेलन में साफ तौर पर दिखाई दी। सम्मेलन के पहले दिन कई देशों के आपसी आतंरिक मसले आपस में टकराते रहे। ब्रिक्स का मौजूदा सम्मेलन जिस मकसद के लिए आयोजित किया गया, उससे भटकता दिखाई दिया।