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एटीएम में कैश का सूखा
एटीएम में कैश का सूखा
सुशील कुमार सिंह    17 Apr 2018       Email   

देश के कई बड़े राज्यों में इन दिनों एटीएम में कैश की व्यापक किल्लत हो गई है और कइयों के तो शटर भी डाउन हैं। ऐसा नकदी में कमी के चलते बताया जा रहा है। गौरतलब है कि 8 नवंबर, 2016 की रात्रि 8 बजे जब नोटबंदी का ऐलान प्रधानमंत्री मोदी द्वारा किया गया था, तब यह भरोसा सरकार को था कि कालाधन इससे समाप्त होगा और अर्थव्यवस्था तुलनात्मक रूप से सशक्त होगी। 17 लाख करोड़ से अधिक मूल्य के कुल संचालित हो रहे धन का 86 फीसदी एक हजार और पांच सौ के नोट को बंद करके सरकार ने उन दिनों बहुत बड़ा जोखिम लिया था और जिसे लेकर अपनी पीठ भी खूब थपथपाई थी। इसके बाद कई मुश्किलें भी आईं। लोगों को 2 से 4 हजार रुपए के लिए महीनों बैंकों के बाहर कतार में खड़ा होना पड़ा, इस उम्मीद के साथ कि सरकार के इस निर्णय में देश की भलाई है और उनके लिए अच्छे दिन। सरकार ने भी सब कुछ ठीक करने के लिए 50 दिन का वक्त मांगा था, परंतु लंबे वक्त तक नोटबंदी के चलते कैश की किल्लतों से जनता परेशानी में तो थी। उन दिनों भी एटीएम खाली थे, तब यह कहा जा रहा था कि नए नोट छप रहे हैं और साथ ही देश के सवा दो लाख एटीएम में नए नोट के हिसाब से परिवर्तन भी किया जा रहा है। यह बिल्कुल सही है कि बदलाव के लिए वक्त चाहिए, पर लंबे वक्त के बाद भी कैश की किल्लत बरकरार हो तो इसे क्या कहेंगे। नोटबंदी के दो दिन बाद ही सरकार ने कैशलेस की बात भी करना शुरू किया था। पड़ताल बताती है कि नोटबंदी के बाद बाध्य होकर बड़ी संख्या में लोगों ने डिजिटल पेमेंट की ओर रुख किया था, परंतु जैसे सर्कुलेशन में कैश बढ़ा, इसमें कमी आई। इसके पीछे टेक्नोलोजी की कम जानकारी और पर्याप्त आधारभूत ढांचा भी माना जा सकता है। खास यह भी है कि चुनाव में कैश का प्रयोग अधिक और तेजी से होता है। भारत हमेशा चुनावी समर में रहता है, इस कारण भी कैशलेस की समस्या रही है। फिलहाल सरकार अब कैशलेस की बात नहीं करती है, वैसे तो कालाधन की भी बात नहीं करती है। यहां तक कि बैंकिंग सिस्टम पटरी पर नहीं है, उस पर भी कुछ खास बात नहीं हो रही है। तो क्या यह माना जाए कि नोटबंदी के असर से भारत अभी भी मुक्त नहीं है। 
अब यह कितना सारगर्भित है, पड़ताल का विषय है। पर सच्चाई यह है कि नोटबंदी से लेकर अब तक 13 लाख करोड़ रुपए की कीमत के नए नोट छापे जा चुके हैं, जिसमें 2 हजार के नोट जो 7 लाख करोड़ रुपए के मूल्य के हैं और पांच सौ के नोट जो 5 लाख करोड़ रुपए के हैं, साथ ही सौ के नोट भी जिनकी कीमत एक लाख करोड़ रुपए की है। बड़ा सवाल और वाजिब सवाल कि जब कमोबेश बाजार में नए नोट के रूप में रुपयों की भरमार हो चुकी है तो एटीएम सूखे क्यों हैं। आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और तेलंगाना आदि राज्यों में कैश की भारी किल्लत है, लेकिन स्पष्ट कर दें कि उत्तराखंड समेत कई छोटे राज्यों में एटीएम पैसा नहीं उगल रहे हैं और बैंकों से भी मनचाही नकदी नहीं मिल रही है। कमोबश समस्या तो पूरे देश में है। आरबीआई का कहना है कि नोटबंदी के चार दिन पहले साढ़े सत्रह लाख करोड़ रुपए से अधिक नोट चलन में थे, जबकि मौजूदा समय में यह आंकड़ा 18 लाख करोड़ रुपए तक हो गया है। दो सौ रुपए के नए नोट चलन में आने से एटीएम में उसे डालने में परेशानी आ रही है, इसके कारण भी कैश की किल्लत हो रही है। यह वही बात हुई जो नोटबंदी के समय दो हजार और पांच सौ के नोट के लिए कही जा रही थी। जब इतने व्यापक पैमाने पर कैश उपलब्ध है तो आखिर पैसा गया कहां। रिजर्व बैंक की रिपोर्ट बताती है कि कुल जारी करेंसी में दो हजार रुपए के नोटों का हिस्सा पचास फीसदी से अधिक है। अब जो आंकड़ा सामने आ रहा है, वह चौंकाने वाला है। बीते जुलाई तक बैंकों में दो हजार रुपए के नोटों की संख्या 35 फीसदी रहती थी। नवंबर 2017 तक यह 25 फीसदी हो गई। एसबीआई, पीएनबी, बैंक ऑफ  बड़ौदा और बैंक ऑफ  इण्डिया समेत कई बैंकों के करेंसी चेस्ट के आंकड़ों में दो हजार रुपए के नोट की संख्या मात्र 9 से 14 फीसदी तक ही है। बड़ा सवाल है कि दो हजार रुपए के नोट कहां हैं। क्या ये डम्प हो रहे हैं और बैंकों में इनकी वापसी नहीं हो रही है। इस दुविधा को भी समझ लेना सही होगा कि बैंकों ने बीते डेढ़ वर्षों में जिस तरह जनता को परेशानी में डाला है, उससे उन्होंने अपना भरोसा भी खत्म किया है। जिसके चलते बैंकों में नकदी मुख्यतः दो हजार और पांच सौ के नोट जमा करने से खाताधारक कतरा रहे हैं। नोटबंदी के बाद भी यह बात सामने आई थी कि 2 हजार रुपए के नोट कालाधन को बढ़ाने में मदद करेंगे, कमोबेश स्थिति वही बनती दिख रही है।  
बैंकों की हालत बहुत पतली है और लगभग देशभर में यही स्थिति है। जिन बैंकों का औसतन बैलेंस नोटबंदी के पहले तीन सौ करोड़ रुपए था, अब वह करीब सौ करोड़ रुपए ही है। इतना ही नहीं बैंकों से जमा नकदी रोजाना 14 करोड़ से घटकर 4 करोड़ हो गई है, जिसमें दो हजार के नोट मात्र 50 लाख रुपए की कीमत के हैं। एक आंकड़ा और देते हैं, सरकारी खातों की जिन बैंकों में अधिकता है, उनके करेंसी चेस्ट का अधिकतम बैलेंस नोटबंदी से पहले 9 सौ करोड़ रुपए था, जो अब करीब ढाई सौ करोड़ है। यहां भी रोजाना जमा नकदी 80 करोड़ से ठीक आधी 40 करोड़ हुई है और इसमें दो हजार के नोट 4 करोड़ रुपए से भी कम मूल्य के हैं। सरकार की आर्थिक नीतियां तो यही इशारा कर रही हैं कि सुविधा के चक्कर में दुविधा बढ़ गई है। आरबीआई के पूर्व गवर्नर वाई.वी. रेड्डी ने अर्थव्यवस्था को नोटबंदी और जीएसटी जैसे कदमों से झटका लगने की बात कही है, साथ ही इससे उबरने के लिए दो साल के समय की जरूरत भी बताई है। एटीएम बंदी को लेकर देश के छोटे-बड़े शहर और ग्रामीण इलाकों से खूब शिकायतें आ रही हैं। फिलहाल एटीएम में कैश की समस्या से नोटबंदी के साइड इफेक्ट दिख रहे हैं। जिस एटीएम से पैसे निकल रहे हैं, वहां लंबी कतार लग रही है। भारतीय स्टेट बैंक की एक शोध रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि आरबीआई ने बड़ी तादाद में 2 हजार रुपए के नोट जारी करने से रोक दिया है या फिर इसकी छपाई बंद कर दी है। कैश की कमी के चलते विभिन्न स्थानों पर लगे एटीएम इंक्वायरी मशीन बन कर रह गए हंै। इसका इस्तेमाल लोग बैलेंस समेत अन्य जानकारी के लिए कर रहे हैं, जबकि एटीएम का मकसद नगदी देना था। फिर क्या इसे अव्यवस्था माना जाए, मिस मैनेजमेंट माना जाए या फिर पटरी से उतर गया सिस्टम समझा जाए।






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