नई दिल्ली ... फरीदाबाद की अल-फलाह यूनिवर्सिटी में चल रहे आतंकी मॉड्यूल से जुड़ी कुछ नई जानकारियां सामने आई हैं। इस मॉड्यूल से जुड़े सभी प्रमुख डॉक्टरों की ड्यूटी तय थी। आतंक का नेटवर्क खड़ा करने में डॉ. मुजम्मिल शकील की अहम भूमिका रही है, जो लोगों को शॉर्टलिस्ट करने के बाद रिक्रूट करता था। नए लोगों को शामिल करने के बाद डॉ. शाहीन सईद और डॉ. उमर नबी उनकी आर्थिक मदद करते और ब्रेनवॉश करते थे। मुजम्मिल यह काम मरीजों और अस्पताल कर्मचारियों के घर मदद के बहाने जाकर करता था।
अस्पताल के जिन कर्मचारियों के नाम इस नेटवर्क में शामिल हैं, उनके परिवार वालों ने खुलासा किया है कि मुजम्मिल इलाज या किसी अन्य बहाने उनके घर आया था। यूं तो मुजम्मिल यूनिवर्सिटी के इमरजेंसी वार्ड का सर्जन था, लेकिन पर्दे के पीछे उसकी भूमिका आतंकी मॉड्यूल में मदद करने वालों की टीम खड़ी करना था। वह यूनिवर्सिटी के अस्पताल में इलाज के लिए आने वाले मरीजों और अस्पताल में काम करने वाले लोगों पर नजर रखता था। ज़रूरत पड़ने पर वह इलाज या अन्य तरीकों से लोगों से संपर्क करता और उनके घर की जानकारी जुटा लेता था। जांच एजेंसियों ने धौज गांव के शोएब को हिरासत में ले रखा है। शोएब को मई 2024 में यूनिवर्सिटी में वार्ड बॉय की नौकरी मिली थी, जिसमें उसे 8 हजार रुपए महीना पगार मिलती थी। शोएब के पिता शोहराब ने दैनिक भास्कर एप की टीम को बताया कि करीब एक साल पहले मेडिकल विंग में शोएब डॉ. मुजम्मिल के संपर्क में आया था। परिवार में किसी के बीमार होने पर शोएब उससे फोन पर बात करके दवाई पूछ लेता था। कुछ महीने पहले डॉ. मुजम्मिल उनके घर पर भी आया था। शोएब के जरिए आस-पड़ोस में कोई बीमार होता था तो वह मुजम्मिल से अस्पताल में आसानी से इलाज करवा देता था, जिसके कारण शोएब और डॉ. मुजम्मिल के गहरे संबंध बन गए थे। शोएब से अस्पताल में काम करने वाले स्टाफ की घर तक की जानकारी ली जाती थी।
काम के बहाने दोस्ती
धौज के ही रहने वाले साबिर को हृढ्ढ्र और जम्मू पुलिस ने इस नेटवर्क में शामिल होने के चलते हिरासत में लिया है। साबिर की गांव में मोबाइल की दुकान है। पुलिस सूत्रों के मुताबिक, करीब 8 महीने पहले डॉ. मुजम्मिल अपनी मोबाइल रिपेयरिंग के लिए साबिर की दुकान पर गया था, जहां उनकी पहचान हुई। इसके बाद डॉ. मुजम्मिल कई बार धौज गया और उसकी दुकान पर जाता था। यूनिवर्सिटी में डॉक्टर होने के कारण साबिर की उससे अच्छी दोस्ती हो गई थी। पुलिस सूत्रों के मुताबिक, कश्मीरी छात्रों के लिए सिम यहीं से खरीदी जाती थी।
गांव धौज के ही रहने वाले बाशिद को भी पुलिस ने इस नेटवर्क में शामिल होने के कारण पकड़ा है। बाशिद ने दिल्ली विस्फोट के बाद डॉ. उमर नबी की लाल रंग की ईको स्पोर्ट्स कार को अपनी बहन के घर छिपाया था। बाशिद की मुलाकात डॉ. मुजम्मिल से अस्पताल में अपने पिता का इलाज कराने के दौरान हुई थी। बाशिद के पिता का लंबे समय तक इलाज चला और इसी दौरान डॉ. मुजम्मिल का उसके घर आना-जाना शुरू हो गया। घर के हालात को भांपने के बाद डॉ. मुजम्मिल ने उसे अपनी टीम का हिस्सा बनाने का लक्ष्य रखा। बाद में डॉ. शाहीन और उमर ने उसे मेडिसन डिपार्टमेंट में ही क्लर्क की नौकरी दिलवा दी। इसके बाद बाशिद से गाड़ी चलवाने और सामान इधर-उधर करने का काम लिया गया।
आर्थिक जरूरत पूरी की
मुजम्मिल ने यूनिवर्सिटी की मस्जिद के इमाम मोहम्मद इश्तियाक को अपनी टीम का सदस्य बनाया। मस्जिद में मुलाकात के बाद डॉक्टर उसके बच्चों का इलाज करने के लिए घर तक पहुंच गया। इस दौरान इमाम के घर से दूध लेना भी शुरू कर दिया। उसने यूनिवर्सिटी से कुछ दूरी पर मदरसा बनाने और वहां सबमर्सिबल लगाने के लिए पैसे भी दिए। इमाम को भरोसे में लेकर, बिना किसी दस्तावेज पर हस्ताक्षर कराए, गांव में उसका कमरा किराए पर लिया, जिसमें से 2593 किलो विस्फोटक सामग्री मिली थी।
लड़कियों को शामिल करने का प्लान
डॉ. शाहीन ने अपनी टीम में लड़कियों को शामिल करने का भी प्लान तैयार किया था, जिसके तहत उसने कुछ लड़कियों की लिस्ट भी बनाई थी, जिसका जिक्र उसकी डायरी में भी है। इसके अलावा, किसको कितने पैसे की मदद करनी है, इसका फैसला भी डॉ. शाहीन और उमर नबी मिलकर ही करते थे। शाहीन लड़कियों की टीम बनाने में कामयाब नहीं हुई और उसने टीम बनाने की जिम्मेदारी डॉ. मुजम्मिल को सौंप दी।