नई दिल्ली .... देश के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने एक बयान में कहा है कि देश में संविधान की पवित्रता और कानून का शासन बनाए रखने के लिए बार की भूमिका बेहद जरूरी है। सीजेआई ने ये भी कहा कि देश में कमजोर और हाशिए पर पड़े लोगों के लिए कानूनी सहायता देने में भी बार की अहम भूमिका है।
संविधान दिवस के मौके पर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि ‘जब हम इस अहम पल का जश्न मना रहे हैं, जब भारत ने अपने आप को अपना बुनियादी अनुबंध दिया था, मैं इस बात पर जोर देना चाहता हूं कि देश में कानून का शासन और संविधान की पवित्रता बनाए रखने में बार की भूमिका बेहद जरूरी है। सीजेआई ने कहा कि ‘मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि अगर अदालतों को संविधान का पहरेदार माना जाता है, तो बार के सदस्य हमारे रास्ते को रोशन करने वाले पथप्रदर्शक हैं। वे हमें अपने गंभीर कर्तव्यों को पूरा करने और हमारे कर्तव्यों को पक्के यकीन के साथ निभाने में मदद करते हैं। उन्होंने कहा कि ‘वह अक्सर न्याय व्यवस्था के अदृश्य पीड़ितों के बारे में बात करते हैं और मेरा मानना है कि सिर्फ बार ही उन्हें इस पीड़ा से बचा सकता है।’ उन्होंने कहा, ‘सांविधानिक मामलों में हमारी मदद करने के अलावा यह भी उतना जरूरी है कि बार हमारे संविधान की मूल भावना को सामने लाने के लिए भी सही कदम उठाए। इसमें उन लोगों को कानूनी मदद देना शामिल है जो कमजोर हैं या समाज के हाशिये पर जी रहे हैं। साथ ही राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में दिए गए नजरिए के साथ खुद को जोड़ना भी बार की जिम्मेदारी है। इस मौके पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के अनुसार, ‘यह संविधान की खूबसूरती है कि इसके तीनों हिस्से, न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका, एक-दूसरे से आजाद हैं और साथ ही अंदरूनी चेक एंड बैलेंस भी है। अगर कार्यपालिका कुछ ऐसा करता है जो संविधान के खिलाफ है, तो न्यायपालिका की सर्वोच्चता है। लेकिन आखिरकार कोई भी अंग सर्वोच्च नहीं होता और सिर्फ संविधान ही सर्वोच्च है।’ 26 नवंबर को साल 2015 से संविधान दिवस के तौर पर मनाया जाता है, यह दिन 1949 में संविधान सभा द्वारा भारत के संविधान को अपनाने की याद में मनाया जाता है।