नयी दिल्ली... फिल्मों के प्रमाणन में महिलाओं की ज्यादा और बराबर भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) ने एक बड़ा कदम उठाया है। अब फिल्मों को प्रमाणित करने वाली हर जांच समिति और सुधार समिति में 50 प्रतिशत महिलाएं शामिल होंगी। सीबएफसी के अनुसार इससे फिल्म प्रमाणन प्रक्रिया ज्यादा संतुलित, पारदर्शी और संवेदनशील बनेगी।
यह बदलाव सिनेमैटोग्राफ (प्रमाणन) नियम, 2024 के अनुरूप किया गया है, जिसमें सीबीएफसी बोर्ड और सलाहकार समिति में कम से कम एक-तिहाई महिलाएं अनिवार्य हैं। अब कमेटियों में महिलाओं की संख्या बढ़ाकर निर्णय लेने की प्रक्रिया को और अधिक समावेशी बनाया जा रहा है।
इसके साथ ही सीबीएफसी ने फिल्म प्रमाणन से जुड़े क्यूआर कोड व्यवस्था में भी कुछ बदलाव किए हैं। इन बदलावों का उद्देश्य यह है कि जरूरी जानकारी जनता तक आसानी से पहुँच सके, लेकिन इसके साथ ही डेटा सुरक्षा, सिस्टम की विश्वसनीयता और निजता भी बनी रहे।
सूचना और प्रसारण तथा संसदीय कार्य राज्य मंत्री डॉ. एल. मुरुगन ने राज्यसभा में कांग्रेस सांसद सागरिका घोष के एक सवाल का जवाब देते हुए बताया कि सीबीएफसी बोर्ड सदस्यों का कार्यकाल सिनेमैटोग्राफ एक्ट, 1952 और उसके नियमों के अनुसार तय होता है। उन्होंने कहा कि नियमों के मुताबिक हर सदस्य अधिकतम तीन साल तक पद पर रह सकता है और तब तक काम करता रहता है जब तक उसकी जगह नए सदस्य की नियुक्ति नहीं हो जाती।
मंत्री ने यह भी बताया कि सीबीएफसी अब अपनी बैठकों का संचालन ऑनलाइन करता है। साल 2017 से फिल्म सर्टिफिकेशन की पूरी प्रक्रिया को ई-सिनेप्रमाण प्लेटफॉर्म के माध्यम से डिजिटल कर दिया गया है। फिल्मों के लिए आवेदन करना, प्रक्रिया से गुजरना और मंजूरी देना सब एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से किया जाता है। फिल्मों की संख्या के आधार पर जांच और सुधार समितियों की बैठकें समय-समय पर आयोजित की जाती हैं ताकि फिल्मों का प्रमाणन समय पर हो सके।
सीबीएफसी के अनुसार यह कदम लिंग समानता, पारदर्शिता और आधुनिक तकनीक के बेहतर उपयोग की दिशा में महत्वपूर्ण बदलाव है। इससे फिल्म प्रमाणन प्रक्रिया और मजबूत, तेज़ और भरोसेमंद बनेगी।