लखनऊ/बहराइच यूपी के बहराइच में राम गोपाल मिश्रा हत्याकांड में गुरुवार को कोर्ट ने फैसला सुनाया। राम गोपाल को गोली मारने वाले मुख्य आरोपी सरफराज को फांसी की सजा दी गई है। जबकि मॉब लिंचिंग करने वाले पिता अब्दुल हमीद, दो भाइयों समेत 9 दोषियों को उम्रकैद सजा हुई है। अपर सत्र न्यायाधीश (एडीजे) की कोर्ट ने 13 महीने 28 दिन में फैसला दिया है। दो दिन पहले 9 दिसंबर को अदालत ने कुल 13 अभियुक्तों में से 10 को दोषी करार दिया था। जबकि तीन आरोपी खुर्शीद, शकील और अफजल बरी हुए थे।
इससे पहले कड़ी सुरक्षा में जेल से सभी दोषियों को कोर्ट लाया गया। अदालत ने एक-एक दोषियों को उनके खिलाफ सजा सुनाई। इस दौरान कोर्ट में काफी गहमा-गहमी रही। बहराइच के महराजगंज बाजार में 13 अक्टूबर, 2024 को दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान हिंसा हुई थी। इसी दौरान राम गोपाल मिश्रा को पहले गोली मारी गई, फिर पीट-पीटकर उसकी हत्या कर दी गई थी। परिवार के लोगों और रामगोपाल की पत्नी का कहना है कि जिन तीन लोगों को कोर्ट ने बरी किया है। वह भी दोषी हैं। सभी आरोपियों को फांसी की सजा होनी चाहिए। पुलिस ने 11 जनवरी को सभी आरोपियों के खिलाफ एडीजे की अदालत में चार्जशीट दाखिल की थी। इसके बाद 18 फरवरी को आरोपों पर बहस हुई। मामले से जुड़े 12 गवाहों ने न्यायालय में अपनी गवाही दी। इसके बाद 21 नवंबर 2025 को जज ने अपना निर्णय सुरक्षित कर लिया। 9 दिसंबर 2025 को अब्दुल हमीद, उनके बेटे फहीम, सरफराज, तालिब के साथ इलाके के रहने वाले सैफ, जावेद, जिशान, ननकऊ, शोएब और मारुफ को दोषी ठहराया गया। वहीं तीन अन्य आरोपियों खुर्शीद, शकील और अफजल को संदेह का लाभ देते हुए दोषमुक्त किया गया। शासकीय अधिवक्ता प्रमोद सिंह ने बताया, धारा 103/2 के तहत मुख्य अभियुक्त को फांसी की सजा हुई है। धारा 103/2 मॉब लिंचिंग से संबंधित धारा है, जिसमें किसी समूह द्वारा जाति धर्म व नस्ल के नाम पर हत्या करने वाले प्रत्येक व्यक्ति के दोष सिद्ध होने पर फांसी या आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है। रामगोपाल की शादी उसकी हत्या से करीब 85 दिन पहले रोली से मंदिर में लव मैरिज थी। राम गोपाल के 4 भाई और दो बहन थे। दो भाइयों की पहले ही मौत हो चुकी है। एक ने फांसी लगा ली थी, दूसरे भाई की डूबने से मौत हुई थी। मौत के समय दोनों की उम्र 25 साल से कम थी। अब राम गोपाल मिश्रा की भी 25 साल से कम उम्र में मौत हो गई। राम गोपाल मिश्रा के पिता कैलाश चंद्र मिश्रा सड़क पर बैठकर हर आने-जाने वालों को देख रहे थे। उन्हें कुछ समझ ही नहीं आ रहा। कहते हैं- बेटा मेरा सहारा था। मुझे कहीं जाना होता था, तो वहीं बाइक से लेकर जाता था।