नई दिल्ली .... सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान ड्यूटी करते हुए जान गंवाने वाले डॉक्टरों के परिवार ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना’ के तहत 50 लाख रुपये का इंश्योरेंस कवर के हकदार हैं। जस्टिस पी एस नरसिम्हा और आर महादेवन की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें कहा गया था कि प्राइवेट डॉक्टर सरकार की इंश्योरेंस स्कीम के तहत कवर के हकदार नहीं हैं।
जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने कहा कि महामारी के समय डॉक्टरों की सेवाएं शासन की ओर से औपचारिक रूप से मांगी गई थीं। यह बात महामारी कानूनों, महाराष्ट्र कोविड रोकथाम नियम, 31 मार्च 2020 को जारी नवी मुंबई नगर निगम के आदेश, पीएमजीकेवाई पैकेज और उससे संबंधित दिशानिर्देशों से स्पष्ट होती है। अदालत ने कहा कि महामारी के दौरान लागू किए गए सभी प्रावधानों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की सेवाओं में कोई कमी न रहे और उन्हें विश्वास दिलाया जाए कि देश उनके साथ खड़ा है। बीमा योजना भी इसी सोच के तहत लाई गई थी, ताकि कोविड योद्धाओं के परिवार सुरक्षित रहें। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि हर बीमा दावा कानून और साक्ष्यों के आधार पर तय होगा। दावा करने वाले पर यह साबित करने का दायित्व होगा कि मृतक डॉक्टर कोविड से संबंधित ड्यूटी निभाते हुए अपनी जान गंवा बैठे। यह फैसला प्रदीप अरोड़ा और अन्य याचिकाकर्ताओं की उस अपील पर आया, जिसमें बॉम्बे हाईकोर्ट के 9 मार्च 2021 के आदेश को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि प्राइवेट अस्पतालों के डॉक्टरों को तभी लाभ मिलेगा जब उनकी सेवाएं राज्य या केंद्र सरकार की ओर से औपचारिक रूप से तैनात की गई हों। मूल मामला किरण भास्कर सुर्गड़े की याचिका से शुरू हुआ था, जिनके पति थाणे में एक निजी क्लीनिक चलाने वाले डॉक्टर की 2020 में कोविड से मृत्यु हो गई थी। बीमा कंपनी ने उनका दावा यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उनका क्लीनिक कोविड अस्पतालों की सूची में नहीं था।