नई दिल्ली .... भारत में महिलाओं की सुरक्षा 2025 में भी एक जटिल चुनौती बनी हुई है, जहां आधिकारिक अपराध आंकड़े स्थिरता दिखाते हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर अनरिपोर्टेड हिंसा और असुरक्षा की भावना व्यापक है।
राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं के खिलाफ अपराध के 448211 मामले दर्ज किए गए, जो 2022 के 4,45,256 मामलों से मामूली बढ़ोतरी दर्शाता है। राष्ट्रीय अपराध दर प्रति लाख महिलाओं पर 66.2 रही, जबकि पति या रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता (29.8 फीसद) सबसे प्रमुख श्रेणी बनी हुई है। ये आंकड़े केवल उन घटनाओं को ही प्रतिबिंबित करते हैं जो पुलिस तक पहुंचती हैं। वास्तविकता इससे कहीं अधिक गंभीर है। राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) की नेशनल एनुअल रिपोर्ट एंड इंडेक्स ऑन विमेंस सेफ्टी (एनएआरआई) 2025 के सर्वे में, 31 शहरों में 12,770 महिलाओं से बातचीत के आधार पर पाया गया कि राष्ट्रीय सुरक्षा स्कोर 65 फीसद है, लेकिन 40 फीसद महिलाएं खुद को शहरों में असुरक्षित महसूस करती हैं। 2024 में 7 फीसद महिलाओं ने सार्वजनिक स्थानों पर उत्पीड़न का सामना किया, जो 18-24 वर्ष की युवा महिलाओं में 14 फीसद तक पहुंच जाता है। सबसे महत्वपूर्ण, लगभग दो-तिहाई (6 फीसद) उत्पीड़न की घटनाएं रिपोर्ट ही नहीं की जातीं।
2025 में महिलाओं की सुरक्षा हर दिन की लड़ाई बनी हुई है
विशेषज्ञों का कहना है कि आधिकारिक आंकड़े नीतिगत प्रगति के दावों को मजबूत करते हैं, लेकिन दैनिक जीवन में महिलाओं को मजबूर करने वाली अनकही हिंसा और सतर्कता को छिपा देते हैं। 2025 में महिलाओं की सुरक्षा हर दिन की लड़ाई बनी हुई है, जहां चुप्पी और समझौता अक्सर न्याय से आगे निकल जाते हैं। एनसीआरबी में मामूली वृद्धि को बेहतर रिपोर्टिंग का संकेत माना जा रहा है] महिला हेल्पलाइन, वन-स्टॉप सेंटर और ऑनलाइन पोर्टल जैसी योजनाओं के कारण। लेकिन क्षेत्रीय भिन्नताएं चिंताजनक हैं, तेलंगाना (124.9), राजस्थान (114.8) और दिल्ली (133.6) में दरें राष्ट्रीय औसत से दोगुनी से अधिक।